समास किसे कहतें हैं समास की परिभाषा 

दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नए शब्द का निर्माण करता है तो उस नए शब्द को समास कहतें हैं 

या 

संधि में दो अक्षर परस्पर मिलाये जाते हैं, समास में दो शब्द पास - पास लाये जाते हैं । सम् ( अच्छी तरह परस्पर ) + घि/धा ( रखना ) अक्षरों या वर्णों का, और सम् ( अच्छी तरह परस्पर ) + आसू ( बैठाना ) शब्दों का । घोड़ागाड़ी = घोड़ा खींचता है जिस गाड़ी को । इसे पास बैठाने की विधि को समास कहते हैं । 

समास किसे कहतें हैं समास की परिभाषा, प्रकारभेद ,उदाहरण


 समास के उदाहरण 

घोड़े पर सवार = घुड़सवार 

  माँ और बाप = माँबाप 

  जहाँ चार राहें मिलती हैं = चौराहा 

   इस प्रकार गौण शब्दों ( कारक चिह्नों, संयोजक पदों, आदि ) का लोप करके समासयुक्त समस्त पद बनाये जाते हैं रामराज्य, दाल - रोटी, यथासंभव, घनश्याम – ये समस्त पद हैं । 

   समस्त या समासयुक्त शब्दों को अलग - अलग करने का नाम 'विग्रह' है । रामराज्य का विग्रह है - राम के राज्य जैसे राज्य ।  

  दाल - रोटी का विग्रह है दाल और रोटी इत्यादि 

  संभव का विग्रह है - यथा ( जैसे ) संभव हो,

घनश्याम का विग्रह है - घन की तरह श्याम है जो | 

 जिन दो मुख्य शब्दों के मेल से समास बनता है, उन शब्दों को खण्ड या अवयव कहते है । घनश्याम में घन पहला ( पूर्व ) खंड है, श्याम दूसरा ( उत्तर ) खण्ड । 

  जिस खंड पर अर्थ का मुख्य बल पड़ती है, उसे प्रधान खंड कहते हैं । 

  जिस खंड पर अर्थ का बल नहीं पड़ता , उसे गौण खंड कहते हैं । इस आधार पर समास के चार प्रकार हैं - 

 1. जिस समास में पूर्व खण्ड प्रधान होता है , वह अव्ययीभाव समास  

2. जिस समास में उत्तरखंड प्रधान होता है , वह तत्पुरुष समास  

3. जिस समास में दोनों खंड प्रधान हों , वह द्वंद्व समास  

4. जिस समास में दोनों खंड प्रधान न हो , वह बहुव्रीहि समास

 समास कितने प्रकार होते हैं   

   अव्ययीभाव समास किसे कहतें हैं उसके भेद 

                     1. अव्ययीभाव समास  

     अव्ययीभाव का अर्थ है अव्यय हो जाना । वास्तव में यह क्रियाविशेषण अव्यय का काम करता अर्थात् क्रिया की विशेषता बताता है । पहले खंड की प्रधानता होती है |  उदाहरणस्वरूप 'भरपेट' में अव्यवीभाव समास है । वैसे 'पेट' एक संज्ञापद है, इसलिए विकार होता है - कई पेटो में । परन्तु भरपेट अव्यय (अविकारी) हो गया तो भरपेट नहीं हो सकता । 'हरघड़ी' अव्ययीभाव हो जाने पर हरघड़ियाँ, हरघड़ियों नहीं हो सकता । 

          यही इस समास की पहचान है, और उदाहरण  

    संस्कृत से — यथाशक्ति, यथाशीघ्र, यथास्थान, यथाक्रम, आजीवन, यावञ्जीवन, आजन्म, कृपापूर्वक, ध्यानपूर्वक, श्रद्धापूर्वक, प्रतिदिन, प्रतिसप्ताह, प्रतिवर्ष, प्रत्येक, प्रत्यक्ष, परोक्ष, निर्विध्र, निःसंकोच, निर्भय, अनुरूप, अनुकूल, संहर्ष सानंद, संपलीक, सपरिवार, मृत्युपर्यन्त, नियमानुसार, दिन-प्रतिदिन । 

      हिन्दी से - अनजाने, बेखटके, निघड़क, निडर, एकाएक, धीरे धीरे, आमने सामने, धड़ाधड़, धमाधम, रातभर, दिनभर, दिनोंदिन, रातोरात, कानोंकान, हाथोंहाथ, बीचोबीच, आप ही आप, कोठे कोठे, धीरे-धीरे, बार-बार, पल-पल, घर-घर, भरसक, पहले पहल, इकबारगी, दुबारा । 

    उर्दू से — बेशक, दर-असल, साल-व-साल, बखूबी, हररोज़ । 


  तत्पुरुष समास किसे कहतें हैं उसके भेद 

                     2. तत्पुरुष समास 

    तत् (उस) का पुरुष । इसमें 'का' ( कारक चिह्न ) का लोप हुआ । इस प्रकार हवन सामग्री - हवन के लिए सामग्री । इसमें 'के लिए' ( कारक चिह्न ) का लोप हुआ । इस समास में उत्तरखंड प्रधान होता है । व्याकरण में अर्थात् वाक्य के अंतर्गत उत्तरखंड (पुरुष या सामग्री) के ही रूप बदलेंगे । पूर्वखंड के नहीं, जैसे राजपुरुषों ने, हवनसामग्री से । वास्तव में पूर्वखंड तो मात्र विशेषण का कार्य करता है, प्रधानता उत्तरखंड की रहती है ।  

        तत्पुरुष समास के छह भेद हो सकते हैं - 

   ( i ) कर्मतत्पुरुष– 'को' कारक चिह्न का लोप, जैसे स्वर्गप्राप्त (स्वर्ग को प्राप्त), शरणागत ( शरण लेने को आया हुआ ), सुखप्रद (सुख को देने वाला), परलोकगमन (परलोक को जाना) । इसी प्रकार गगनचुम्बी, चिड़ीमार, कठफोड़ा, मनोहर, मुँहतोड़, घरफूँक, चित्तचोर, गिरहकट । 

   ( ii ) करणतत्पुरुष– 'से' 'के द्वारा' का लोप, जैसे ईश्वरदत्त (ईश्वर द्वारा दिया हुआ), तुलसीकृत (तुलसी द्वारा बनाया हुआ) रोगग्रस्त (रोग से ग्रस्त), गुणयुक्त (गुणों से युक्त) । इसी प्रकार मनमाना, भुखमरा, मदमाता, मदांध, प्रकृतिदत्त आँखोंदेखा, मुँहमाँगा, पदयात्रा, बंधनमुक्त, गुणहीन, विद्याहीन, धनरहित, वज्राहत, शोकाकुल, अकालपीड़ित, कष्टसाध्य, शिरोधार्य, वज्राहत ।

   ( iii ) सम्प्रदान तत्पुरुष– 'के लिए'  का लोप, जैसे देशभक्ति (देश के लिए भक्ति), भूतबलि (भूतों के लिए बलि), कन्याविद्यालय (कन्याओं के लिए विद्यालय) । इसी प्रकार देवबलि, हथकड़ी, आरामकुर्सी, दानधान, भंडारघर, रसोईघर, हवनकुंड, राहखर्च, महँगाईभत्ता,मार्गव्यय, बलिपशु , पशुशाला, आदि ।

  ( iv ) अपादान तत्पुरुष – कारक चिह्न 'से' (अलगपन) का लोप, जैसे - जातिच्युत (जाति से च्युत), धर्मविमुख (धर्म से विमुख), जन्मांध ( जन्म से अंधा ), देशनिकाला (देश से निकाला) । इसी प्रकार बहिरागत, भयभीत, ऋणमुक्त, धर्मभ्रष्ट । 

  ( v ) संबंध तत्पुरुष- कारक चिह्न 'का, के, की' का लोप, जैसे - नरेश, राष्ट्रपति, ग्रंथकार, सेनापति, विभाध्यक्ष, गृहस्वामी, गंगाजल, ऋषिकन्या, घुड़दौड़, अनारदाना, लखपति, ग्रामवासी, सिरदर्द, घुड़साल, करोड़पति, दयानिधि, करुणासागर, दीनानाथ, पतितपावन, भक्तवत्सल, रामनाम, जलधारा । 

  ( vi ) अधिकरण तत्पुरुष- कारक चिह्न 'में, पर' का लोप, जैसे- शास्त्रनिपुण (शास्त्र में निपुण), आपबीती (अपने पर बीती), जलमग्न (जल में मग्न), सिंहासनारूढ़ (सिंहासन पर आरूढ़) इस प्रकार रणकुशल, सभापण्डित, सर्वोत्तम, वीरश्रेष्ठ, गृहागत, शरणागत, वनवास, हृदयस्थ, गंगाखान, प्रेममग्न, मनमौजी, कानाफूसी । 

  तत्पुरुष समास के चार और प्रकार वैयाकरणों की सूची में आते हैं— 

अलुक तत्पुरुष, उपपद तत्पुरुष, नञ् तत्पुरुष और प्रादि तत्पुरुष । चारों का संदर्भ संस्कृत में है । 

     अतुक तत्पुरुष — इसमें कारण चिह्न का लोप नहीं हुआ, जैसे- युधिष्ठिर, मनसिज, आत्मनेपद, परस्मैपद, निशिचर । 

    उपपद तत्पुरुष — इसमें उत्तरखंड स्वयं में सार्थक तो हैं, पर स्वतंत्र रूप से भाषा में व्यवहृत नहीं होता, जैसे जलचर, भास्कर, कलेशकर, सुखद, शांतिप्रद, लेखक । 

   नञ् तत्पुरुष — इसमें पहला खंड नकारात्मक (न- उपसर्ग) होता है, जैसे — अनादि, अन्याय, नास्तिक, निर्बल, निर्दोष, अनपढ़, अछूता, अनिष्ट । 

    प्रादि तत्पुरुष —  इसमें अपि, प्रति, उप आदि पहले खंड में होते हैं, जैसे- प्रदेश, व्याकुल, आकाश, सुश्रत्र, प्रत्यागमन । 

  तत्पुरुष समास के ही दो और भेद हैं जो अधिक महत्वपूर्ण हैं - कर्मधारय समास और द्विगु समास ।  

कर्मधारय समास 

         जब कोई एक खण्ड विशेषण या उपनासूचक शब्द हो तो कर्मधारय समास बनता है । इसे समानाधिकरण तत्पुरुष भी कहते हैं, क्योंकि विग्रह करने पर इसके दोनों पद एक ही कारक या विभक्ति में होते हैं । ये समास विशेषण-विशेष्य और उपमान उपमंय की स्थिति के अनुसार बनते हैं । उदाहरण - 

    ( क ) विशेषण + विशेष्य जैसे – महात्मा, दीर्घायु, महाराज, अंध-विश्वास, भलामानस, नीलगाय, नीलकमल, कालीमिर्च, कृष्णसर्प । 

   ( ख ) विशेष्य + विशेषण जैसे —  मुनिवर, पुरुषोत्तम, नराधम, देशांतर । 

   ( ग ) विशेषण + विशेषण : जैसे —  मोटा ताजा, हृष्ट-पुष्ट, सीधा-सादा, नीललोहित, हरा-भरा, अथवा उपमेय + उपमान । 

   ( घ ) विशेष्य + विशेष्य : जैसे —  चरणकमल, मुखकमल, मुखचंद्र , भवसागर, करकिसलय, पुरुषसिंह, क्रोधाग्रि, विद्याधन, वदन सुधाकर । इनमें उपमान उत्तरपद हैं । 

   ( च ) विशेष्य + विशेष्य, अथवा उपमान + उपमेय, जैसे —  चंद्रमुख , विवोष्ठ , कंबुग्रीव ।   

द्विगु समास 

               जिस कर्मधारय समास में पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो और जिसके समस्तपद से समूह का बोध हो, उसे द्विगु समास कहते हैं । उदाहरण — 

     इकतारा, इकूहरा, दुगुना, दोपहर, दुधारा, दुपटूटा, त्रिभुवन, त्रिदोष, तिकोना, त्रिगुण, चौमासा, चौपाया, चौराहा, चतुष्पदी, चारपाई; पंचवटी, पंसेरी, पड्दर्शन, षट्कोण; सप्तरासिंधु, सप्तपदी, सतसई, अष्टभुज, अठवारा । 

    नोट - तत्पुरुष और उसके उपभेदों में समस्तपद का लिंग-निर्णय उत्तर खंड के अनुसार होता है, जैसे स्त्रीरत्न पुंल्लिंग हैं । 

 द्वंद्व समास किसे कहतें हैं उसके भेद 

                           3. द्वंद्व समास 

 द्वंद्व का अर्थ है 'जोड़ा' या 'युग्म' । भाषा में कई युग्म शब्द होता है । उनका विग्रह करने पर 'और' 'अथवा/या' लगता है । दोनों शब्दों की प्रधानता एक समान होती है । 

द्वंद्व समास के तीन भेद हैं — 

   ( क ) इतरेतर द्वंद्व – अर्थात् परस्पर एक साथ । यह समस्त पर 'और' का लोप करने से बनते हैं, जैसे – माँ और बाप = माँ-बाप, स्त्री और पुरुष स्त्री-पुरुष । और उदाहरण — 

    दाल-रोटी, भाई-बहन, अन्न-जल, आचार-व्यवहार, नीचे-ऊपर, आगा-पीछा, लोटा-डोरी, बाप-दादा, राजारानी, कंदमूल, हरिहर, भला-बुरा, आना-जाना, छल-कपट, बेटा-बेटी, सीताराम, राधाकृष्ण, सीधा-सादा, । 

  ( ख ) वैकल्पिक द्वंद्व — ऐसे समास 'या/अथवा' के लोप से बनते हैं, 

  जैसे — थोड़ा या बहुत = थोड़ा-बहुत, सुख या दुःख = सुख-दुख भले-बुरे सब तेरे - चाहे हम भले हैं या बुरे हैं, तो तेरे और उदाहरण —  

  पाप - पुण्य, धर्माधर्म, आय-व्यय, इधर-उधर,।राग-विराग, जीवन-मरण, शादी-गमी, यश-अपयश, हानि-लाभ । 

  ( ग ) समाहार द्वंद्व — ऐसे युग्म शब्द बनते हैं जिनसे दो पदों के अर्थ के अतिरिक्त कुछ और भी अर्थ निकलता है, जैसे—दाल-रोटी चलती है — यही दाल और रोटी ही नहीं, 'घर का सामान' यह आशय है । 'सेठ-साहूकार' कहने का अर्थ है सब तरह के धनी लोग । इसी प्रकार — 

      हाथ-पांव (हिलाओ), यहाँ मक्खी-मच्छर (कोई नहीं) । 

      रोना-धोना, (बंद करो), धन-दौलत = सारी संपत्ति, बाल-बच्चे = सारा परिवार, कपड़ा-लत्ता (सारा सामान), झाड़-फूँक (सारी-सफाई), खाना-पीना (सारे खाद्य पदार्थ), लेन-देन (परस्पर व्यवहार), घास-पात (सारा कूड़ा), लँगड़ा-लूला (विकलांग) ।  

     नोट- द्वंद्व समास में प्रायः स्त्रीलिंग पद पूर्वपद होता है, जैसे गौरीशंकर, राधाकृष्ण, गोपी कृष्ण, सीताराम, स्त्रीपुरुष, नाक-कान, गाय-बैल, माता-पिता, माँ-बाँप । 

  थोड़े अक्षरों वाला पद भी पहले रहताहै , जैसे- धन-दौलत, आय-व्यय, सेठ-साहूकार ।  

 बहुव्रीहि समास किसे कहतें हैं उसके भेद  

                           4. बहुव्रीहि समास 

 जब दो शब्द मिलकर (समास युक्त होकर) किसी तीसरे शब्द का विशेषण बन जाएँ तो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं । इस समास में दोनों शब्दों में से कोई भी प्रधान नहीं होता, और समस्त पर किसी अन्य संज्ञा की ओर संकेत करता है । इसका विग्रह करने में 'वाला', 'वाली', और 'जो' 'जिस' आदि का प्रयोग किया जाता है; जैसे — 

 बड़बोला — बढ़चढ़कर बोलने वाला, जिसके बोल बड़े हो वह । राम बड़बोला है । 

 दुरंगा — दो रंगोवाला, दो रंग हैं जिसमें । 

 चतुर्भुज — चार भुजाओंवाला, चार भुजाएँ हैं जिसकी और उदाहरण — मन्दगति, कुशाग्रबुद्धि, पीताम्बर, शांतचित्त, बारहसिंगा, कनफटा, सिरफरा, एकतारा । 

बहुव्रीहि समास का विग्रह कारक के अनुसार होने से इसके भी कारकीय भेद हो सकते है । उदाहरण — 

 कर्ता बहुव्रीहि — जितेन्द्रिय — जीत ली है इन्द्रियाँ जिस ने । 

 करण बहुव्रीहि — कृत कार्य — किया गया है कार्य जिसके द्वारा । 

 संप्रदान बहुव्रीहि — दत्तधन – दिया गया है धन जिस के लिए । 

         —उपहृत पशु - उपहार में दिया गया पशु जिस के लिए ।  

 अपादान बहुव्रीहि – निर्जन — निकल गए जन जहाँ से ।  

             विमल — हट गया मैल जहाँ से । 

 संबंध बहुव्रीहि — पीताम्बर — पीला है वस्त्र जिस का ।  

            मिठबोला — मीठे है बोल जिस के । 

 चक्रपाणि — चक्र है हाथ में जिस के । 

            चतुभुज — चार हैं भुजाएँ जिस की । 

   ऐसे शब्द बहुत हैं — दीर्घबाहु, दीर्घायु, पुण्यात्मा, व्यंजनांत, पंचानन, कनकटा, हँसमुख, लंबोदर, नीलांबर आदि । 

 अधिकरण बहुव्रीहि – पतझड़ — पत्ते झड़ते हैं जिस ( मौसम ) में । 

बहुव्रीहि — बहुत है चावल (व्रहि) जिस (पात्र में) । 

 नोट - कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है और दूसरा विशेष्य । यदि पीताम्बर का अर्थ पीला वस्त्र हो, तो यह कर्मधारय समास का उदाहरण है । और यदि पीतांबर का अर्थ पीले वस्त्र वाला (कृष्ण) तो यह है बहुव्रीहि समास । 

        समास-सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण बातें 

 1. सामासिक शब्दों में निम्नलिखित परिवर्तन हो जाते हैं 

( क ) महत् का महा हो जाता है, जैसे — महादेव, महाबाहु, महाराज । 

( ख ) संज्ञा का न् नहीं रहता, जैसे — हस्ति-शावक, राजवंश, गुणिगण, योगिराज ।  

( ग ) शब्द के अंत में रात्रि का रात्र हो जाता है, जैसे नवरात्र, अहोरात्र, पंचराज । 

( घ ) शब्द के अंत में राजन् का राज रह जाता है, जैसे - धर्मराज, महाराज । 

( ङ ) सामासिक शब्द के अंत में नाभि का नाभ हो जाता है, जैसे पद्यनाभ । 

( च ) समास के अंत में अक्षि का अक्ष या अक्षी हो जाता है, जैसे रुद्राक्ष, पुण्डरीकाक्ष, विशालाक्षी, मीनाक्षी । 

( छ ) अहन् का अह्न हो जाता है, जैसे पूर्वाह्न, अपराह्न, सप्राह्न । 

( ज ) कु उपसर्ग स्वर से पहले 'कद्' हो जाता है, जैसे कदन्न, कोदण्ण । 

( झ ) द्वंद्व समास में दो पदों के मध्य - आ - या विसर्ग आ जाता है, जैसे मित्रावरुण, इंद्रावस्था, अहोरात्र, अहर्निश ।( ञ ) तत्पुरुष समास के मध्य में भी 'आ' आ जाता है । विश्वामित्र और दीनानाथ में । 

( ट ) प्रादि तत्पुरुष में स्त्रीलिंग-द्योतक - आ का लोप हो जाता है, जैसे निर्दय, अक्षम, निराश । 

2. दो से अधिक शब्दों के समास हो सकते हैं, और उनमें एकाधिक समास-भेद भी हो सकते हैं, जैसे —  

  गुरुजन सेवक — गुरु जन (कर्मधारय समास) + गुरुजन का सेवक (तत्पुरुष समास) । 

 महाराजपुत्र — महाराज (कर्मधारय समास) + महाराजपुत्र (तत्पुरुष समास) । 

 पूर्वप्रयानुसार — कर्मधारय और अव्ययीभाव समास ।  

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