क्रिया किसे कहते हैं - परिभाषा, भेद एवं उदाहरण  सहित बताएं?

क्रिया किसे कहते हैं - परिभाषा, भेद एवं उदाहरण  सहित बताएं?


क्रिया किसे कहते हैं?


क्रिया-जिन शब्दों से काम का करना या होना पाया जाये, उन्हें क्रिया कहते हैं । 

    क्रिया का अर्थ होता है काम का करना या होना । इसलिए क्रिया से सदा कार्य का बोध होता है । क्रिया तीन प्रकार के शब्दों से बनती है : 

 1. धातु से - पढ़ना = पढ़ + ना 

 2. संज्ञा से - हथियाना = हाथ + आ + ना 

 3. विशेषता से - चिकनाना = चिकन + आ + ना 


हिंदी की अधिकांश क्रियायें धातु से बनती है । धातु मे 'ना' जोड़ने से क्रिया का सामान्य रूप बनता है । इसका अर्थ है कि सामान्य क्रिया से 'ना' हटा देने पर जो शब्द रह जाता है, उसे 'धातु' कहते हैं : धातु + ना = सामान्य क्रिया-पढ़ + ना = पढ़ना इस प्रकार, धातु का अर्थ है क्रिया का मूलरुप 

क्रिया कितने प्रकार के होते हैं ?

रचना की दृष्टि से क्रियायें दो प्रकार की होती है- 

1. रुढ ( मूल )  2. यौगिक 

    रूढ क्रियायें वे हैं जो धातु से बनती है, क्योंकि धातु का अर्थ ही है - 'मूल' खाना, खाया, खाती, खाऊ, खाए, खाऊंगा, खायेगा, आदि में एक धातु विद्यमान है - 

   'खा' । इसी से सब क्रिया रूप बने हैं । इसी प्रकार 'देख' से देखा, देखता, देखूं, देखूंगी और 'ले' ले लेना, लिया, लेंगे आदि क्रिया रूप सिद्ध होते है । 

   यौगिक क्रियाएं वे हैं जो एक से अधिक तत्वों से बनती है, जैसे - खाना से खिलाना, पीना से पिलाना, देख से देखना, पढ़ना से पढवाना आदि । 

    यौगिक क्रियाएं चार प्रकार की होती है- 

(1) प्रेरणार्थक क्रियायें (2) संयुक्त क्रियायें (3) अनुकरणत्मक क्रियायें (4) नाम धातु क्रियायें 

(1) प्रेरणार्थक क्रियायें - 

जब कर्ता किसी कार्य को स्वयं न करके किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा दे, तो उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं । 

 उदाहरणार्थ - कुनाल ने महेंद्र को जगाया । 

                  ( महेन्द्र कुनाल की प्रेरणा से जागा ) 

               कुनाल ने महेंद्र को जगवाया  । 

 ( कुनाल ने किसी को प्रेरणा दी कि महेंद्र को जगा दो ) 

इस प्रकार बहुधा धातुओं के दो-दो प्रेरणार्थक रूप होते है- प्रथम वह जिसमें आ लगता है, जैसे- कर से करा, सुन से सुना और द्वितीय वह जिसमें वा लगता है, जैसे-  सुन से सुनवा, देख से देखवा । 

(2) संयुक्त क्रियायें -

 जो क्रिया किसी क्रिया अथवा संज्ञादि शब्द के साथ दूसरी क्रिया का योग करने से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं । 

अर्थ की दृष्टि से संयुक्त क्रिया के 13 भेद किये जा सकते है । 

 i. आरम्भ बोधक     :  धातु + ने + लगाना = वह पढ़ने लगा । पानी बरसने लगा ।  

ii. समाप्ति बोधक    : धातु + चूकना = वह खा चुका ।  वह खा चुका । 

iii. आकस्मिक बोधक  :  धातु + उठना, बैठना, पड़ना = वह कह उठा । वह रो पड़ा ।  

iv. निरंतरता बोधक  :  'जाना', 'रहना' के पहले वर्तमान कृदन्त रूप, जैसे- बरसता रहता है, चलता गया, बोलती रहती है । 

v. अभ्यास बोधक  :  भूत कृदन्त + 'करना', जैसे- पढ़ा करता है, लिखा करता है । 

vi. शक्यता बोधक  : धातु + 'सकना', जैसे - जा सकते हो, वह पढ़ सकता है । 

vii. अवकाश बोधक  : धातु + ने + पाना-वह पढ़ने न पाया । जाने न पाया । 

viii. अनिष्टता बोधक  : धातु + 'खाना', 'मरना', जैसे - कुत्ते कुत्ते ने काट खाया, चिट्ठी लिख मरी । 

ix. इच्छा बोधक  : धातु + ना + चाहना । जैसे - वह जाना चाहती है । आप क्या खाना चाहेंगे । 

x. अनुमति बोधक  : धातु + ने + देना, जैसे - उसे पढ़ने दो । मुझे जाने दो । उसे करने दिया गया । 

xi. आवश्यकता बोधक  : धातु + ना रूप + 'पढ़ना', 'चाहिए', 'होना', जैसे - करना पढ़ेगा, जाना चाहिए, लेना चाहिए । 

xii. अतिशयता बोधक  : उसी क्रिया की द्विरुक्ति, जैसे - पढ़ते -पढ़ते सो गया, बैठे-बैठे थक गया, सुन सुनकर । 

xiii. संज्ञादि के साथ संयुक्ति क्रिया में संज्ञा आदि का अर्थ प्रधान रहता है । जैसे- अपना बनाना, आदर करना, भस्म होना, ढील पड़ना । 

(3) अनुकरणत्मक क्रियायें - किसी वास्तविक या कल्पित ध्वनि के अनुकरण में हम क्रियाएं बना लेते है; जैसे - खटखट से खटखटाना, भनभन से भनभनाना, सनसन से सनसनाना इत्यादि । 

(4) नामधातु क्रियायें - जो धातु संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण से बनती है, उसे नामधातु कहते हैं; जैसे - हाथ से हथियाना, झूठ से झूठलाना, गरम से गरमाना, गुस्सा से गुस्साना इत्यादि ।