रस कई प्रकार के होते हैं। आम रस सेब रस गन्ना रस 😂😂 अरे नहीं नहीं हम ये रस की बात नहीं कर रहे भाई हम हिंदी विषय के व्याकरण की बात कर रहें हैं।
तो आज हम रस के बारें में जानेंगे की रस किसे कहतें है रस कितने प्रकार के होते हैं रस के परिभाषा और अंग के बारे में ।
रस किसे कहतें हैं परिभाषा,प्रकार ,अंग,भेद उदाहरण सहित
रस किसे कहते हैं |रस की परिभाषा
कविता पढ़ने और नाटक देखने से पाठक और श्रोता को जो असाधारण और अनिवर्चनीय आनन्द की अनुभूति होती है, वही रस है । रस से पूर्ण वाक्य ही काव्य है । 'साहित्य दर्पण' में काव्य की व्याख्या करते हुए आचार्य विश्वनाथ लिखते हैं- रसात्मक वाक्य को काव्य कहते है। रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है ।
रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में लिखा है- विभव, अनुभव और व्याभिचारी (संचारी) भावों के संयोग से रस कि निष्पत्ति होती है । इस आधार पर रस निष्पत्ति के निम्नलिखित तत्व है -
(1) स्थायी भाव (2) विभाव (3) अनुभाव (4) संचारी भाव
(1) स्थायी भाव -
मानव ह्रदय में, कुछ भाव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं । इन्हें स्थायी भाव कहते हैं । स्थायी भाव की परिपक्व अवस्था ही रस है । ये 9 होता हैं, अतः रस भी नौ प्रकार के माने गये हैं ।
स्थायी भाव रस
1. रति श्रृंगार रस
2. हास हास्य
3. शोक करुण
4. उत्साह वीर
5. क्रोध रौद्र
6. भय भयानक
7. जुगुत्सा (घृणा) विभत्स
8. विस्मय अदभुत
9. नीर्वेद (वैराग्य) शान्त
(2) विभाव -
रसों को उदित और उद्दीपन करने वाली सामग्री विभाव कहलाती है । विभाव के 3 भेद हैं -
(i) आलम्बन- जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण स्थायी भाव जाग्रत होता है, उसे 'आलम्बन विभाव' कहते हैं । जैसे- नायक-नायिका, प्रकृति आदि ।
(ii) उद्दीपन- स्थायी भाव को उद्दीपन या तीव्र करने वाले कारण 'उद्दीपन विभाव' कहलाते हैं । जैसे- नायिका का रूप सौन्दर्य आदि । प्रत्येक रस के उद्दीपन विभाव अलग अलग होते हैं ।
(iii) आश्रय- जिसके ह्रदय में भाव उत्पन्न होता है, उसे आश्रय कहते हैं ।
(3) अनुभाव-
मानोगत भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक और मानसिक चेष्ठाये अनुभाव हैं । अनुभाव भावों के बाद उत्पन्न होते है, इसीलिए इन्हें अनु+भाव (भावों का अनुसरण करने वाला) कहते हैं । अनुभाव मुख्यता दो प्रकार के हैं-कायिक और सात्विक ।
(i) कायिक अनुभाव- कायिक अनुभाव शरीर की चेष्ठाओ को कहते हैं । जैसे- कटाक्षपात, हाथ से इशारे करना, निश्वास आदि । कायिक अनुभाव जान-बूझकर, प्रयासपूर्वक किये जाते हैं ।
(ii) सात्विक अनुभाव- जो शारीरिक चेष्ठाये स्वाभाविक रूप से स्वतः उत्पन्न हो जाती है, उन्हें सात्विक भाव कहते हैं । ये गणना में आठ हैं-
1. रोमांच, 2. कंप, 3. स्वेद, 4. स्वरभंग, 5. अश्रु, 6. वैवरन्य (चेहरे का रंग उड़ जाना), 7. स्तम्भ (शरीर की चेष्टा का रुक जाना), 8. प्रलय ( चेतनाशुन्य होना) ।
(4) संचारी भाव -
जो भाव मन में केवल अल्प काल तक संचरण करके चलें जाते हैं, संचारी भाव कहलाते हैं । इन्हीं का दूसरा नाम व्याभिचारी भाव है । ये स्थायी भाव को पुष्ट करके क्षण में गायब हो जाते हैं । इनकी संख्या 33 है- निर्वेद, आवेग, दैन्य, श्रम, मद, जड़ता, उग्रता, मोह, शंका, चिंता, ग्लानि, विषाद, व्याधि, आलस्य, अमर्ष, हर्ष, गर्व, मती, असूया, घृति, चापल्य,लज्जा, अवहित्था, निद्रा, स्वप्न, विवोध, उन्माद, अपस्मार, स्मृति, औउतसुक, त्रास, वितर्क, मरण ।
रस के भेद |रस कितने प्रकार होते हैं?
नाट्यशास्त्र के प्रणेता आचार्य भरत मुनि ने आठ प्रकार के रस माने हैं, तो आचार्य मम्मट और विश्वनाथ ने रसों की संख्या नौ माना है । आगे चलकर वात्सल्य रस और भक्ति रस की भी कल्पना की गई । इस प्रकार 11 रसों की कल्पना हुयी । 1.श्रृंगार रस 2.हास्य 3.करुण 4.वीर 5.रौद्र 6.भयानक 7.विभत्स 8.अदभुत 9.शान्त 10.वात्सल्य 11.भक्ति ।
रसों में पारम्परिक सम्बन्ध
कुछ रसों में आपस में विरोध है । श्रृंगार का करुण, रौद्र और भयानक के साथ, हास्य का भयानक और करुण के साथ, करुण का हास्य और श्रृंगार के साथ, वीर का भयानक और शांत के साथ, विभत्स का श्रृंगार के साथ, शान्त का वीर, रौद्र, श्रृंगार, हास्य और भयानक के साथ ।
इसी तरह, कुछ रस परस्पर मित्र होते हैं । श्रृंगार रस की हास्य, वीर और अद्धभुत के साथ मित्रता है । हास्य की श्रृंगार के साथ, करुण की श्रृंगार के साथ, वीर की श्रृंगार, अदभुत की रौद्र के साथ, रौद्र की अदभुत के साथ, भयानक की विभत्स के साथ, अदभुत की श्रृंगार के साथ और शान्त की श्रृंगार के साथ परस्पर मित्रता है ।
यह केवल एक साधारण नियम है, कवियों ने अपनी प्रतिभाओं के द्वारा इसका सफल उल्लंघन भी कर लेते हैं ।
रसों के उदाहरण
(1) श्रृंगार रस
उदाहरण -
i. संयोग श्रृंगार
श्रीराम को देखकर सीता के प्रेम का वर्णन-
देखन मिस मृगह-बिहंग-तरु, फिरति बहोरि-बहोरि ।
निरिख-निरिख रघुबीर-छवि, बढ़ी प्रीति न थोरि ।।
देखी रूप लोचन ललचाने । हरखे जनु निज निधि पहचाने ।।
थके नयन रघुपति-छवि देखी । पलकन हू परहरी निमेखी ।।
अधिक सनेह देह भई भोरी । सरद-ससिहि जनु चिताव चकोरी ।।
लोचन-मग रामशिन उर आनी । दीन्हे पलक-कपाट सयानी ।।
- तुलसी दास (रामचरितमानस)
रस-संयोग श्रृंगार । स्थायी भाव-रति । आश्रय-सीता । आलम्बन-राम । उद्दीपन-वाटिका आदि । अनुभाव-स्तम्भ, देह का भारी होना, नयनों का थकित होना,
ii. वियोग श्रृंगार
अति मलीन ब्रजभानु-कुमारी
अघ-मुख रहित, उरघ नहीं चितवति,
ज्यों गथ हारे थकित जुआरी ।
छूटे चीकुर, बदन कुम्हिलानो,
ज्यों नलिनी हिमकर की मारी ।।
स्थायी भाव-रति । आश्रय-राधा । आलम्बन-कृष्ण । अनुभाव-अधोमुख रहना, अन्यत्र नहीं देखना, मुख का कुम्हला जाना, बालों का बिखरना । संचारी भाव- ग्लानि, चिन्ता, दैन्य ।
(2) हास्य रस
सखी बात सुनो इक मोहन की,
निकसी मटुकी सिर रीती ले कै ।
पुनि बाँधी लयो सु नये नतना
रु कहूं-कहूं बून्द करीं छल कै ।।
निकासी उहि गैल हुते जहां मोहन,
लीनी उतारि तबै चल कै ।
पतुकी धरि श्याय खिसाय रहे,
उत गयारि हंसी मुख आँचल कै ।।
रस-हास्य । स्थायी भाव-हास । आश्रय-गोपी । आलम्बन-कृष्ण । उद्दीपन-कृष्ण का खिसियाना । अनुभाव-मुख पर आँचल करना, हसना । संचारी भाव- चपलता, हर्ष
(3) करुण रस
सुनी मृदु बचन भूप- हिय सोकू ।
ससि कर छूअत विकल जिमि कोकू ।।
गयेउ सहमी, नहीं कही कछु आवा ।।
जनु सचान वन झपटेउ लावा ।।
बिबरन भयेउ निपट महिपलू ।
दामिनी हनेउ मनहु तरु तालू ।।
माथे हाथ, मुंदी दोउ लोचन ।
तनु धरी लाग सोचू जन सोचन ।।
रस-करुण । स्थायी भाव-शोक । आश्रय-दशरथ । आलम्बन-राम । उद्दीपन-कैकेयी के वचन । अनुभाव-स्वर भंग, माथे पर हाथ रखना, नेत्र मूंदना । संचारी भाव-विकलता, सहमना, चिन्ता ।
(4) वीर रस
मैं सत्य कहता हूं सखे ! सुकुमार मत जानो मुझे ।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे ।।
हे सारथे? हैं द्रोण क्या? आवें स्वय देवेंद्र भी ।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी ।।
रस-युद्ध वीर । स्थायी भाव-उत्साह । आश्रय-अभिमन्यु । आलम्बन-द्रोण आदि कौरव -पक्ष के वीर । अनुभाव-अभिमन्यु का वचन । संचारी भाव-गर्व, हर्ष, उत्सुकता ।
(5) रौद्र रस
माखे लघन, कुटिल भयी भौहें ।
रद-पट फरकत नैन रिसौहें ।।
कहि न सकत रघुवीर डर, लगे वचन जनु बान ।
नाई राम-पद-कमल-जुग, बोले गिरी प्रसाद ।।
रस-रौद्र । स्थायी भाव-क्रोध । आश्रय-लक्ष्मण । आलम्बन-जनक के वचन । उद्दीपन-जनक के वचनों की कठोरता । अनुभाव-अमर्ष, उग्रता आदि ।
(6) भयानक रस
समस्त सर्पों संग श्याम ज्यों कढ़े
कलिंद की नन्दिनी के सु-अंक से ।
खड़े किनारे जितने मनुष्य थे,
सभी महा शंकित भीत हो उठे ।।
हुए कई मुर्छित घोर त्रास से,
कई भगे, मेदिनी में गिरे कई ।
हुई यशोदा अति ही प्रकंपिता,
ब्रजेश भी व्यसन-समस्त हो गये ।।
रस-भयानक । स्थायी भाव-भय । आश्रय-ब्रजवासी । आलम्बन-सर्पों से घिरे हुए कृष्ण का दृश्य । अनुभाव-भागना, गिरना, कांपना, मुर्च्छित होना (प्रलय) । संचारी भाव-शंका, आवेग, मोह ।
(7) विभत्स रस
रक्त-मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है
महाघोर दुर्गन्ध, रूद्ध हो उठती स्वासा ।
तैर रहे गल अस्थि-खण्डशत, रूंड मुंडहत
कुत्सित कृमि-संकुल कर्मद में महानाश के ।।
रस-विभत्स । स्थायी भाव-जुगुत्सा । आश्रय-मजदूर । आलम्बन-युद्ध-भूमि । उद्दीपन-सडाव, दुर्गन्ध आदि । अनुभाव-स्वास का रूद्ध होना ।
(8) अदभुत रस
सती दीख कौतुक मग जाता । आगे राम सहित सिय -भ्राता ।।
फिर चितवा पाछे प्रभु देखा । सहित बन्धु-सिय सुन्दर बेखा ।।
जह चीतवइ तह प्रभु आसीना । सेवहि सिद्ध मुनिस प्रवीना ।।
सोइ रघुबर,सोइ लक्ष्मन-सीता देखि सती अति भयी सभीता ।।
ह्रदय कम्प, तन सुधी कछु नाहीं । नयन मुंदी बैठा मग माहीं ।।
रस-अदभुत । स्थायी भाव-विस्मय । आश्रय-सती । आलम्बन-राम का आगे पिछे सर्वत्र दिखायी देना । अनुभाव-कम्प, स्तम्भ, नेत्र मूंदकर बैठ जाना । संचारी भाव-त्रास, जडता, मोह ।
(9) शान्त रस
समता लहि सीतल भया, मिटी मोह की ताप ।
निसि-वासर सुख निधि लम्हा, अंतर प्रगटया आप ।।
रस- शान्त । स्थायी भाव- शम ।
(10) वात्सल्य रस
सन्तान के प्रति स्नेह भाव वात्सल्य कहा जाता है । यही वात्सल्य भाव विभावादि के संयोग से 'वात्सल्य' की व्यंजना करता है ।
यशोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै जोई-सोई कुछ गावै ।
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेगै,
कब धरनि पग दै धरै ।
रस-वात्सल्य । स्थायी भाव-पुत्र के प्रति स्नेह । आश्रय-माता यशोदा । आलम्बन-पुत्र श्रीकृष्ण । उद्दीपन-बालक की चेष्टाएं । अनुभाव-बालक को पालने जुलाना, लोरी गाना । संचारी भाव-हर्ष, आवेग आदि ।
(11) भक्ति रस
जाको हरि दृढ़ करि अंग करयो ।
सोई सुसील, पुनीत, बेद-बिद विद्या गुननि भरयो ।।
उतपति पांडु-सुतन की करनी सुनि सतपंथ डरयो ।
ते त्रेलोक्य-पूज्य, पावन जस सुनी-सुन लोक तरयो ।।
जो निज धरम बेद बोधित सो करत न कछु बिसरयो ।
बिनु अवगुन कृकलासकूप मज्जित कर गहि उधरयो ।।
रस-भक्ति ।
स्थायी भाव-देव के प्रति भक्तिभाव । आश्रय-स्वय कवि । आलम्बन-श्रीराम । उद्दीपन-श्रीराम की दयालुता, भक्त के प्रति वत्सलता । अनुभाव-श्रीराम की महिमा (गुण) का कथन । संचारी भाव-हर्ष, स्मृति आदि ।
यह भी पढ़े- क्रिया किसे कहतें हैं ?
FAQ
क्रोध में कौन सा रस होता है?
उत्तर - क्रोध में रौद्र रस होता है
सर्वश्रेष्ठ रस कौन सा है?
उत्तर - वात्सल्य रस
उत्साह किसका स्थायी भाव है?
उत्तर - उत्साह वीर का स्थायी भाव है
रस सूत्र के जनक कौन है?
उत्तर - भरत मुनि
वीर रस किसे कहते हैं?
उत्तर - जिसमे वीरता का भाव हो उसेवीर रस किसे कहते हैं
हास्य रस किसे कहते हैं?
उत्तर - जिसमें हास्य का भाव हो उसे हास्य रस किसे कहते हैं
रस कितने प्रकार के होते हैं Class 10, Class 11,Class 12 यह तीनो क्लास के लिए एक जैसा रहेगा क्योंकि रस की परिभाषा एक ही है उम्मीद करता हूँ की आपको रस किसे कहतें हैं परिभाषा,प्रकार ,अंग,भेद उदाहरण सहित आपको समझ आ गया होगा धन्यवाद
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